केबल बृहस्पतिबार के दिन मरे हुए उल्लू की आँखे निकल कर कहीं सुरक्षित रख लें तथा उसके शेष भाग को आधी रात के समय किसी चौराहे पर गाढ़ दें । इसके बाद जब भी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन गुरुबार पड़े, उस दिन उल्लू की आँख को शुद्ध सुरमे में घिसकर अंजन तैयार करें ।
अंजन तैयार हो जाने पर, दुसरे दिन प्रात: स्नानदि से निबृत हो, कुशा के आसन पर पूबाभिमुख बैठें तथा अंजन के पात्र को अपने सामने रखकर... https://www.aghortantra.com/gupt-bidya/